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रिश्ते-2 / कविता वाचक्नवी

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रंगी परातों से चिह्नित कर

चलते पायल-से रिश्ते

हँसी -ठिठोली की अनुगूँजें

भरते, कलकल-से रिश्ते


पसली के अंतिम कोने तक

कभी कहकहे भर देते

दिन-रातों की आँख-मिचौनी

हैं ये चंचल-से रिश्ते


उमस घुटन की वेला आती

धरती जब अकुलाती है

घन-अंजन आँखों से चुपचुप

बरसें बादल -से रिश्ते


पलकों में भर देने वाली

उंगली पर रह जाते हैं

बैठ अलक काली नजरों का

जल हैं, काजल -से रिश्ते


कभी तोड़ देते अपनापन

कभी लिपट कर रोते हैं

कभी पकड़ से दूर सरकते

जाते, पागल -से रिश्ते