भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पतझर-2 / अचल वाजपेयी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 26 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अचल वाजपेयी |संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य कविताएँ }} हर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर दिन

सुबह होतेही

गुड़ की गंधाती चाय

बीमार मेमनों से

रिरियाते बच्चे

खुरदुरे पत्थर पर

घिसती वह औरत

स्वयं को

अस्वीकृत करता वह आदमी


एक पतझर

देर रात तक

लोगों के कान उमेठता है