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सुरसत निवंण / शिवराज भारतीय
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थूं है ग्यान रो सागर मां
म्हैं नैनी-सी गागर मां
हिरदै रो अंधियारो मेटो
करद्यो घट सैंचन्नण मां
वीणा-पोथी हाथां सो‘वै
हंस घणो मनड़ै नै मौ‘वै
ममता री मूरत रा दरसण
चित रा भाव उजाळै मां
मिनख-मिनख सूं अळगा भाजै
सहम्या-सहम्या डरै नै दाझै
भर-भर बांथां मिला सैंग नै
देख‘र हरखै मुळकै मां
मायड़भासा सिरै विराजै
जण-जण रै कंठां पर साजै
सेवा इणरी करां जलम भर
भाव इणीं में सिरजै मां
ग्यान-गंगा सूं तन-मन तारो
सुरसत ताप हरो थे म्हारो
बिरथा ना जा मिनख जमारो
आसीसां दे सुरसत मां ।