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ओळ्यूं-14 / पूर्ण शर्मा पूरण

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सरर-सरर सरकती
रेत रा ठीया
उतरती सिंझ्या रा
कूं-कूं पगलिया
आथूंणी कूंट तांई पसरती
बूढियै नींम री छिंयां
सोचूं... ऐ सगळा
थारै आवंण रा
ऐनांण ई तौ है।