Last modified on 16 अक्टूबर 2013, at 21:10

मधरा मधरा बोलियै / राजूराम बिजारणियां

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:10, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजूराम बिजारणियां |संग्रह=चाल भ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

‘‘पोढ़ो ढोला ढोलियै
मधरा मधरा बोलियै’’

कूंट-कूंट उगेरîा गीत
धोरां रै धोरी
भंवर भतूळै रै
आंगणैं आयां।

पून करी मनवार
हलायो पंखियो
देंवता कोवौ।

लोटै पाणी घाल
धुवाया हाथ
कराई चळू बादळी
गजबी पावणां नै।

कोर कोर कांगणां
मांड्या मांडणां
लगायां मैंदी हाथ

.....मांझळरात!

पोढी रेत
रळायां हेत
ले ढोलै नै ढोलियै।

बांथमबांथ
भव सूं दूर
भंवती छियां
चढी अकासां

मिटावती भेद
दो होवण रो।