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बटाऊ / कन्हैया लाल सेठिया
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मत
हार मतो
जा बगतो
अबै
कतो‘क रसतो ?
चालै सागै
मेलती माथै
खोजां नै धूल
मती अणख कांटां
आं रै कडूंबै में फूल,
कठै है तू एकलो
ऊभा पग पग पर
खेजड़ा‘र बंवल
घौळे सांसां में
मिठास
मींझर
करै छयां
लियां छत्तो
बडेरा बड़‘र पींपल
जाण‘र तनै
अणमणो
गीतेरण कमेड़यां
कर दी गूंगी रोही नै
बातैरण,
देख‘र
तनैं सुसतातो
थमग्यो चनेक
आंथूणी पोळी में
बड़तो मोटो सूरज
चाल उठा‘र पग
मत हार हिम्मत
दो खेत आगै
गोरी रै गांव री
कांकड़ !