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इण रिंधरोही / मदन गोपाल लढ़ा

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पड़तख सांच सूं
नटती बगत
उण नीं सोच्यो
कै म्हारै अंतस रै अंधारै में
हेत रा दिवला
चसाया कुण हा।

कांई ठाह कींकर
बिसरा देवै लोग
सोराई सागै
आपरै काल नै।

पण म्हारा जीवड़ा !
थूं किंयां धिकैला
इंयां गळगळो हुय‘र
इण रिंधरोही।