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म्हारी कविता 1 / रामस्वरूप किसान

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थारी प्रीत सूं
बडी कोनी म्हारी कविता

थारी-म्हारी
गुरबत रै बगत
सबदां री
बची-खुची
कीरच ई तो है
म्हारी कविता।