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साची बात / कन्हैया लाल सेठिया
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सूनूं आभो तकतां तकतां
आयो मेह असाढ़ उतरतां
तिरसा मरती धरती भीजीं
मोठ गुंवार बाजरी बीजी,
साव निकळग्यो सूखो सावण
भादूड़ै नै दे भोळावण,
पण कुण किण रो कारज सारै
सगळा भाजै मन रै लारै,
के कुदरत री करां बुराई ?
मिनख मिनख में आ खोटाई !