भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम / नारायणसिंह भाटी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:56, 7 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नारायणसिंह भाटी |संग्रह= }} {{KKCatMoolRajasthani‎}} {{KKCatKavita‎}}<poem>र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रे थूं कसूंबल सो रंगीलौ
मीठौ मद सूं
हठीलौ पवन सूं
चंचळ पलकां सो
लाज सो लजीजौ
खोड़ीलौ है भंवर भंवरां सो
भोळौ है अचपळौ है ।
धन है मन रौ
सिंणगार जीवण रौ
मन-आंख्यां रौ ओखद
पण आंधौ है ।
बे मोल बे ठौड़ मिळै है
पण मंहगौ है ।