अन्त के बाद
कुछ नहीं होगा
न वापसी
न रूपान्तर
न फिर कोई आरंभ।
अन्त के बाद
सिर्फ अन्त होगा।
न देह का चकित चन्द्रोदय,
न आत्मा का अँधेरा विषाद,
न प्रेम का सूर्यस्मरण।
न थोड़े से दूध की हलकी सी चाय,
न बटनों के आकार से
छोटे बन गये काजों की झुँझलाहट।
न शब्दों के पंचवृक्ष,
न मौन की पुष्करिणी,
न अधेड़ दुष्टताएँ होंगी
न वनप्रान्तर में नीरव गिरते नीलपंख।
न निष्प्रभ देवता होंगे,
न पताकाएँ फहरते लफंगे।
अन्त के बाद
हमारे लिए कुछ नहीं होगा-
उन्हीं के लिए सब होगा
जिनके लिए अन्त नहीं होगा।
अन्त के बाद
सिर्फ
अन्त होगा,
हमारे लिए।