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दक्षिन के चीर-पहिर ले ले गोरिय / भोजपुरी

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सखि आरी हे, हाँ, रे जोतलीं में गोला बरधा, बोअलीं मकाई।
पहिले खान्छ चेहरा सूगा तब करेले नेवाना रे।
कि हो बिरहा बुबसु मोर, सँवरी बठिनियाँ उमड़ि रस देले रे।।१।।
सखि आरी हे, कि आगे तिरो झूमके थैली, पीछे तीरो बासा रे।
ताहि को दाया, ताही को माया, ताही को नाहीं आसा रे।
हो बिरहा बसु मोर, सँवरी बठिनियाँ उमड़ि रस देइछो रे।।२।।
सखि आरी हे, उमें देखो काली लेखा, उमे त मन छइना रे।
कि पंछी होके उड़नो जान्द, बसंने को मन छइना रे।
हो हो रे बिरहा बसु मोर कि कसड़ी बठिनियाँ उमड़ि रस देइछो रे।।३।।