भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाँव का आसमान / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:37, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह=बाँस-वन और बाँ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आमों में सरसई लगेगी
महुए फूलेंगे
गाँवों से होकर आना
हम तुमको छू लेंगे
एक आँख में फूली सरसों
दूजी में गलियारे,
मन मेम लाना भरी गोद
मुस्काते मौन इशारे,
परछाईं छू कर आना
हम तुमको छू लेंगे।
खेतों में खंजन के जोड़े
मेड़ो पर सारस के
सीवानों में उड़ें पपीहे
पिहकें तरस-तरस के
धुले रुमालों पर सरपत के
सपने झूलेंगे।
सुबह गाँव का आसमान
इन साँसों में अँटता है
शाम, शहर का पिंजरा
छत के छल्ले में टँगता है
ठहरी आँखें, पंख फड़कते
कैसे भूलेंगे?