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स्टैच्यू बोल दे / जेन्नी शबनम

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जी चाहता है
उन पलों को
तू स्टैच्यू बोल दे
जिन पलों में
'वो' साथ हो
और फिर भूल जा...



एक मुट्ठी ही सही
तू उसके मन में
चाहत भर दे
लाइफ भर का
मेरा काम
चल जाएगा...



भरोसे की पोटली में
ज़रा-सा भ्रम भी बाँध दे
सत्य असह्य हो तो
भ्रम मुझे बैलेंस करेगा...



उसके लम्स के क़तरे
तू अपनी उस तिजोरी में रख दे
जिसमें चाभी नहीं
नंबर लॉक हो
मेरी तरह 'वो' तुझसे
जबरन न कर सकेगा...



अंतरिक्ष में
एक सेटलाईट टाँग दे
जो सिर्फ मेरी निगहबानी करे
जब फुर्सत हो तुझे
रिवाइंड कर
और मेरा हाल जान ले...



क़यामत का दिन
तूने मुकरर्र तो किया होगा
इस साल के कैलेण्डर में
घोषित कर दे
ताकि उससे पहले
अपने सातों जन्म जी लूँ...



अपना थोड़ा वक्त
तेरे बैंक के सेविंग्स अकाउंट में
जमा कर दिया है
न अपना भरोसा
न दुनिया का
अंतिम दिन
कुछ वक्त
जो सिर्फ मेरा...



मैं सागर हूँ
मुझमें लहरें, तूफ़ान, खामोशी, गहराई है
इस दुनिया में भेजने से पहले
प्रबंधन का कोर्स
मुझे करा दिया होता...



मेरे कहे को
सच न मान
रोज़ 'बाय' कर लौटना होता है
और
उसने कहा -
जाकर के आते हैं
कभी न लौटा...



बहुत कन्फ्यूज़ हूँ
एक प्रश्न का उत्तर दे -
मुझे धरती क्यों बनाया?
जबकि मन
इंसानी...

(जनवरी 17, 2013)