भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रथमपतिगृहानुभवम् / संस्कृत

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:03, 23 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{ KKLokRachna |रचनाकार }} हे सखि पतिगृहगमनं<br> प्रथमसुखदमपि किंत्वतिक्लिष्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात


हे सखि पतिगृहगमनं
प्रथमसुखदमपि किंत्वतिक्लिष्टं री।
परितो नूतन वातावरणे
वासम् कार्यविशिष्टं री।।
वदने सति अवरुद्धति कण्ठं
दिवसे अवगुण्ठनमाकण्ठं।
केवलमार्य त्यक्त्वा तत्र
किंञ्चिदपि मया न दृष्टं री।।
वंश पुरातन प्रथानुसरणं
नित्यं मर्यादितमाचरणं।
परिजन सकल भिन्न निर्देश पालने
प्रभवति कष्टं री।।
भर्तुर्पितरौ भगिनी भ्राता
खलु प्रत्येकः क्लेश विधाता।
सहसा प्रियतममुखं विलोक्य तु
सर्वं कष्ट विनिष्टं री।।
अभवत् कठिनं दिवावसानम्
बहु प्रतीक्षितं रजन्यागमनम्।
लज्जया किञ्च कथं कथयानि
विशिष्ट प्रणयपरिशिष्टं री।।