भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुमने कितनी निर्दयता की / गोपालदास "नीरज"
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:19, 3 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुमने कितनी निर्दयता की !
सम्मुख फैला कर मधु-सागर,
मानस में भर कर प्यास अमर,
मेरी इस कोमल गर्दन पर रख पत्थर का गुरु भार दिया।
तुमने कितनी निर्दयता की !
अरमान सभी उर के कुचले,
निर्मम कर से छाले मसले,
फिर भी आँसू के घूँघट से हँसने का ही अधिकार दिया।
तुमने कितनी निर्दयता की !
जग का कटु से कटुतम बन्धन,
बाँधा मेरा तन-मन यौवन,
फिर भी इस छोटे से मन में निस्सीम प्यार उपहार दिया।
तुमने कितनी निर्दयता की !