आजादी का दिन मना,
नई गुलामी बीच ;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच ;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए ;
एक-एक कर बुझे दीप,
आँधियारे छाए ;
कह कैदी कबिराय
न अपना छोटा जी कर ;
चीर निशा का वक्ष
पुनः चमकेगा दिनकर ।
आजादी का दिन मना,
नई गुलामी बीच ;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच ;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए ;
एक-एक कर बुझे दीप,
आँधियारे छाए ;
कह कैदी कबिराय
न अपना छोटा जी कर ;
चीर निशा का वक्ष
पुनः चमकेगा दिनकर ।