भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उठो / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:58, 15 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र }} बुरी बात है चुप मसान में बैठे-बैठ...)
बुरी बात है
चुप मसान में बैठे-बैठे
दुःख सोचना , दर्द सोचना !
शक्तिहीन कमज़ोर तुच्छ को
हाज़िर नाज़िर रखकर
सपने बुरे देखना !
टूटी हुई बीन को लिपटाकर छाती से
राग उदासी के अलापना !
बुरी बात है !
उठो , पांव रक्खो रकाब पर
जंगल-जंगल नद्दी-नाले कूद-फांद कर
धरती रौंदो !
जैसे भादों की रातों में बिजली कौंधे ,
ऐसे कौंधो ।