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ईसुरी की फाग-11 / बुन्देली
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♦ रचनाकार: ईसुरी
जो तुम छैल, छला हो जाते, परे उंगरियन राते
भौं पौंछत गालन के ऊपर, कजरा देत दिखाते
घरी-घरी घूंघट खोलत में, नज़र सामने आते
'ईसुर' दूर दरस के लानें, ऎसे काए ललाते ?