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लाय / संजय आचार्य वरुण
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हर काची-पाकी
काया रै भांडै
वै लगा दी है-
एक लाय।
उणसूं
वंारै घरां मांय
हो रैयो है
अवस ही चानणो
पण हर काया लागी
उण लाय सूं
राख बणतो जा रैयो है
उण काया मांय
रैवण वाळो मिनख।