ठंढा लोहा ! ठंढा लोहा ! ठंढा लोहा !
मेरी दुखती हुई रगों पर ठंढा लोहा !
मेरी स्वप्न भरी पलकों पर
मेरे गीत भरे होठों पर
मेरी दर्द भरी आत्मा पर
        स्वप्न नहीं अब
        गीत नहीं अब
        दर्द नहीं अब
एक पर्त ठंढे लोहे की
मैं जम कर लोहा बन जाऊँ - 
हार मान लूँ - 
यही शर्त ठंढे लोहे की 
ओ मेरी आत्मा की संगिनी ! 
तुम्हें समर्पित मेरी सांस सांस थी, लेकिन 
मेरी सासों में यम के तीखे नेजे सा 
कौन अड़ा है ? 
      ठंढा लोहा ! 
मेरे और तुम्हारे भोले निश्चल विश्वासों को  
कुचलने कौन खड़ा है ?
      ठंढा लोहा ! 
ओ मेरी आत्मा की संगिनी ! 
अगर जिंदगी की कारा में  
कभी छटपटाकर मुझको आवाज़ लगाओ 
और न कोई उत्तर पाओ 
यही समझना कोई इसको धीरे धीरे निगल चुका है 
इस बस्ती में दीप जलाने वाला नहीं बचा है 
         सूरज और सितारे ठंढे 
      राहे सूनी  
        विवश हवाएं 
              शीश झुकाए खड़ी मौन हैं 
                बचा कौन है ? 
  ठंढा लोहा ! ठंढा लोहा ! ठंढा लोहा !
ठंढा लोहा (काव्य संग्रह) में संग्रहित[[Category:  कविताएँ]