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ज़ख़्मों के कई नाम / सुदीप बनर्जी
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ज़ख़्मों के कई नाम
रचनाकार | सुदीप बनर्जी |
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प्रकाशक | राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, 2/38 अंसारी मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 |
वर्ष | 1992 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 100 |
ISBN | 91-7119-103-7 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- शेर ने कान्हा से / सुदीप बनर्जी
- एक शेर आया सपने में / सुदीप बनर्जी
- जंगल अगर गए थे / सुदीप बनर्जी
- जंगल से वापिस अगर लौटेंगे / सुदीप बनर्जी
- वे पहचानेंगे मौत के मुल्ज़िम को / सुदीप बनर्जी
- पैदल-पैदल चलकर / सुदीप बनर्जी
- निसरनी / सुदीप बनर्जी
- तर्जुमा / सुदीप बनर्जी
- किसके तीर से बिंधी / सुदीप बनर्जी
- साइकिल / सुदीप बनर्जी
- अपनी धारीदार वर्दी में / सुदीप बनर्जी
- वह दीवाल के पीछे खड़ी है / सुदीप बनर्जी
- तमाम रात के अनंत बोगदे से / सुदीप बनर्जी
- देखा उड़ती चीलों को / सुदीप बनर्जी
- काशीनाथ / सुदीप बनर्जी
- आसमान तुम्हारे कितने तारे / सुदीप बनर्जी
- क्योंकि सब चुप हैं / सुदीप बनर्जी
- ये अनजान दरख़्त अपरिचित फूल-पत्तियाँ / सुदीप बनर्जी
- साइकिल का पहिया लिए / सुदीप बनर्जी
- वे फ़ैसला देते हैं / सुदीप बनर्जी
- एक सुराख़ से देखी सारी दुनिया / सुदीप बनर्जी
- मैं खिड़की से बाहर देखता हूँ / सुदीप बनर्जी
- कहा फूल तो / सुदीप बनर्जी
- सारी कहकशाएँ पर्दों में निहाँ / सुदीप बनर्जी
- तमाम नदियों का अंत है / सुदीप बनर्जी
- ज़ख़्मों के कई नाम. / सुदीप बनर्जी
- मनोहरलाल के बारे में / सुदीप बनर्जी
- काफ़ी मर चुके / सुदीप बनर्जी
- मर्दमशुमार / सुदीप बनर्जी
- एक बूढे को विदा देते / सुदीप बनर्जी
- इतनी-इतनी मौतों के बाद / सुदीप बनर्जी
- इस वक़्त स्कूल जा रहे हैं बच्चे / सुदीप बनर्जी
- एक और बच्चा मर गया / सुदीप बनर्जी
- डर लगता है राम / सुदीप बनर्जी
- पहले भी वे मनमानी करते थे / सुदीप बनर्जी
- यह आसान तो नहीं / सुदीप बनर्जी
- आप लगातार / सुदीप बनर्जी
- फिर आपने / सुदीप बनर्जी
- पखवाड़े-भर की अदासी से ऊबकर / सुदीप बनर्जी
- नींद से उठकर / सुदीप बनर्जी
- सुनसान पटरियाँ / सुदीप बनर्जी
- वह आहिस्ता से आकर / सुदीप बनर्जी
- खेल के मैदान में / सुदीप बनर्जी
- ज़माने के हाशिए पर / सुदीप बनर्जी
- आदमख़ोर ट्रक / सुदीप बनर्जी
- तुमने कितने बनाए कवि / सुदीप बनर्जी
- यह गहरा बहुत ख़ूबसूरत है / सुदीप बनर्जी
- उठो / सुदीप बनर्जी
- वह तो आख़िरी दरख़्त / सुदीप बनर्जी
- नदी / सुदीप बनर्जी
- सुबह जल्दी उठने से / सुदीप बनर्जी
- रात कोई भीड़-भाड़ में नहीं / सुदीप बनर्जी
- शहर की रूह / सुदीप बनर्जी
- तालाब में तैर रही है / सुदीप बनर्जी
- महरी / सुदीप बनर्जी
- तुम्हारी हँसी होती / सुदीप बनर्जी
- नीली कमीज़ में / सुदीप बनर्जी
- वैसे तो उसके बारे में यह है / सुदीप बनर्जी