भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय के हाशिए / महेश उपाध्याय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 22 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश उपाध्याय |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दिन उगा
कपड़े पहनकर चल दिए
कहाँ तक झेलें समय के हाशिए
पेट कीख़ातिर हुए मजबूर
ख़ून छोड़ा, हो गए मज़दूर
चल पड़े लम्बी बहर के काफ़िए
चिट्ठियाँ लेकर चलें ज्यों डाकिए ।