भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं घोड़ों की दौड़... / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:27, 31 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं-1 / केद...)
मैं घोड़ों की दौड़
- वनों के सिर पर तड़-तड़ दौड़ा,
पेड़ बड़े से बड़ा
- चिरौंटे-सा चिल्लाया चौंका,
पत्तों के पर फड़-फड़ फड़के--
- उलटे, उखड़े, टूटे,
मौन अंधेरे की डालों पर
- सांड पठारी छूटे !