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दुःख झेलत तौ ग़ज़ल कैत हैं / महेश कटारे सुगम

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दुःख झेलत तौ ग़ज़ल कैत हैं ।
दिल टूटत तौ ग़ज़ल कैत हैं ।

दफ्तर में बैठे अधिकारी,
जब लूटत तौ ग़ज़ल कैत हैं ।

नेता सब रैयत की माटी,
जब कूटत तौ ग़ज़ल कैत हैं ।

भले आदमी बीदत, गुण्डा,
जब छूटत तौ ग़ज़ल कैत हैं ।

गुस्सा में मारत काटत जब,
घर फ़ूँकत तौ ग़ज़ल कैत हैं ।

जब कोउ मरे गिरन के लानें,
नईं पूछत तौ ग़ज़ल कैत हैं ।