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तीव्र आतप तप्त व्याकुल आर्त्त हो महती तृषा से
शुष्कतालू हरिण चंचल भागते हैं वेग धारे
वनांतर में तोय का आभास होता दूर क्षण भर
नील अन्जन-सदृश नभ को वारि शंका में विगुर कर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !
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तीव्र आतप तप्त व्याकुल आर्त्त हो महती तृषा से
शुष्कतालू हरिण चंचल भागते हैं वेग धारे
वनांतर में तोय का आभास होता दूर क्षण भर
नील अन्जन-सदृश नभ को वारि शंका में विगुर कर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !