Last modified on 4 नवम्बर 2008, at 19:57

आँगन की अल्पना सँभालिए / कुँअर बेचैन

198.190.230.62 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:57, 4 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} दरवाज़े तोड़-तोड़ कर घुस न जाएँ आ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दरवाज़े तोड़-तोड़ कर

घुस न जाएँ आंधियाँ मकान में,

आंगन की अल्पना संभालिए।


आई कब आंधियाँ यहाँ

बेमौसम शीतकाल में

झागदार मेघ उग रहे

नर्म धूप के उबाल में

छत से फिर कूदे हैं अंधियारे

चंद्रमुखी कल्पना संभालिए।


आंगन से कक्ष में चली

शोरमुखी एक खलबली

उपवन-सी आस्था हुई

पहले से और जंगली

दीवारों पर टंगी हुई

पंखकटी प्रार्थना संभालिए।