एक छोटे बचे की हथेली में
तेल से अम्मा एक गोल बनाती
कहती ये लो लड्डू
भैया दूसरी हथेली बढ़ा देता
अब दूसरी में पेड़ा
भैया देर तक मुस्कराता...ार के आंगन में भागता
मीठा हो जाता
गप-गप खा जाता लड्डू-पेड़ा
खुशियों के आंगन में ममता की बड़ी ानी छांव होती है
जहां बाबा की पुरानी बड़ी कुर्सी पर
अम्मा भैया को बैठा देती ये कहकर
अब लो तुम राजा
भैया झूम जाता
बताशे में पानी डाल कर
तुम ही खिला सकती थी गोलगपा
जादूगरनी...तुम ही थी
सूना आंगन...हवा में हिलती कुर्सी
खाली हथेलियों का खारापन
हमारी दोनों मुट्ठियां तुम्हारे सामने हैं
तुमने बारी-बारी से दोनों को चूमा ये कहकर
एक में हंसी एक में खुशी
हमने अपनी आंखें ढंक ली हैं
तुम नदी सी समा रही हो हथेलियों में
बस एक बार दे दो ना वही लड्डू-पेड़ा
हमें पता है तुम नहीं टालोगी।