भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुरली राजत अधर पर / प्रेमघन
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:02, 30 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमघन |संग्रह=युगमंगलस्तोत्र /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मुरली राजत अधर पर उर विलसत बनमाल।
आय सोई मो मन बसौ सदा रंगीले लाल॥
सीस मुकुट कर मैं लकुट कटि तट पट है पीत।
जमुना तीर तमाल तर गो लै गावत गीत॥
वृज सुकुमार कुमारिका कालिन्दी के तीर।
गल बाँही दीन्हे दोऊ हँसत हरत भवपीर॥