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नुकाय गेलै / सुभाष भ्रमर

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ऐलै भादोॅ कोयलिया नकाय गेलै हे
फूल कासोॅ के उजरोॅ फूलाय गेलै हे

हवा बहलै कि मोॅन उमताइये गेलै
की-की कनखी सेॅ बिजुरी बताइये गेलै
केना निरमोही डगरी भुलाय गेलै हे
ऐलै भादोॅ कोयलिया नकाय गेलै हे

उमड़ी केॅ मारै छै ननदी नेॅ जोर
रसें-रसें टूटे छै देह पोर-पोर
साँझ भेलै नै, झिंगली फुलाय गेलै हे
ऐलै भादोॅ कोयलिया नकाय गेलै हे

रहै शुक्कर सेॅ घेरलोॅ शनिच्चर तांय मेघ
बरसै जरूर ई घाघोॅ के टेक
मतुर पियवां तेॅ जियरा कुढाय गेलै हे
ऐलै भादो कोयलिया नकाय गेलै हे