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बढ़ती जाए मेरी अलोकप्रियता / कुमार सौरभ
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Kumar saurabh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:33, 10 अप्रैल 2017 का अवतरण
मुझे चाहने वाले बहुत कम हों
इज़ाफा होता रहे दुश्मनों में मेरे
यही उचित अनुपात है।
बढ़ता जाए मेरा प्यार इस दुनिया से
इसे सुंदर बनाने वाले अवयवों से
विचारों से
प्रयासों से
जीवन से
प्रकृति से
निरंतर खोजे जा रहे सच से
बढ़ती जाए मेरी अलोकप्रियता !