Last modified on 30 अप्रैल 2017, at 14:14

गीतों में चिल्लाता हूँ / राहुल शिवाय

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:14, 30 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=आँस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं तो ख़ुद चीख नहीं पाता पर गीतों में चिल्लाता हूँ।

जिस रात मुझे सन्नाटे की आवाज सुनाई देती है
जिस रात मुझे मेरे दुःख की परछाई दिखाई देती है
जिस रात घने अंधेरे में, मैं घुट-घुट कर रह जाता हूँ
जिस रात मैं अपने सपनों को, उम्मीदों को दफनाता हूँ
उस रात मैं गाता हूँ दुःख को उस रात मैं तुझे बुलाता हूँ
मैं तो ख़ुद चीख नहीं पाता पर गीतों में चिल्लाता हूँ।

जिस रात मेरी मजबूरी पर यह हृदय सवाली होता है
जिस रात मेरे उत्तर का हर तरकश ही खाली होता है
जिस रात मेरी यह खामोशी मुझको ही पल-पल डसती है
जिस रात मेरे इस जीवन पर मेरी श्वासें भी हँसती है
उस रात में निज कविताओं से सब पर पत्थर बरसाता हूँ
मैं तो ख़ुद चीख नहीं पाता पर गीतों में चिल्लाता हूँ।

जिस रात गरमजोशी सें मैं परवाज लगाने उठता हूँ
जिस रात मैं कदम बड़ा करके खुद बेवश होकर झुकता हूँ
जिस रात मेरे इन कदमों पर, मेरा मन भी पछताता है
जिस रात मेरी लाचारी को, मन कायरता बतलाता है
उस रात मैं अपनी हारों को गीतों में जीत दिलाता हूँ
मैं तो ख़ुद चीख नहीं पाता पर गीतों में चिल्लाता हूँ।