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टापरयां री कळ्यां / जनकराज पारीक
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टापरयां री काळयां फूलड़ा होयगी।
समझो देळ्यां सूं खुशबू हवा होयगी।
सोळवैं साल नागां री निजरां चढी।
डीकर्यां गौर रा गुलगुला होयगी।
सा ब री गरज ही सिर्फ सौरम तईं,
कच्ची कळियां कई हामला होयगी।
ना कीं बोलै ना चालै बिसूरै खड़ी
जिन्दगाणी बकरियै री मा होयगी।
बेई निरधन री जोबन रै झागां चढ़ी,
सूकतै रूंख रा पानड़ा होयगी।