{{KKRachna |रचनाकार=रचना शेखावत |अनुवादक= |संग्रह=
पान झरै तो कांर्इ्र
झर जाओ भलांई
कदास आ नीं होवै
उमर खोलै चौपड़ी
काढै
कोई लियो-दियो।
जूना हिसाब खुल्यां
लाग जावै
ब्याज-पड़ब्याज
फेर भलांईं
उमर रैवै ठंड दांई
पान झरै तो झरो भलांईं।