भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ / प्रभाकर माचवे
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:45, 20 अप्रैल 2011 का अवतरण
ईश्वर का वरदान है माँ
हम बच्चों की जान है माँ
मेरी नींदों का सपना माँ
तुम बिन कौन है अपना माँ
तुमसे सीखा पढ़ना माँ
मुश्किल कामों से लडना माँ
बुरे कामों में डाँटती माँ
अच्छे कामों में सराहती माँ
कभी मित्र बन जाती माँ
कभी शिक्षक बन जाती माँ
मेरे खाने का स्वाद है माँ
सब कुछ तेरे बाद है माँ
बीमार पडूँ तो दवा है माँ
भेदभाव ना कभी करे माँ
वर्षा में छतरी मेरी माँ
धूप में लाए छाँव मेरी माँ
कभी भाई, कभी बहन, कभी पिता बन जाती माँ
ग़र ज़रूरत पडे तो दुर्गा भी बन जाती माँ
ऐ ईश्वर धन्यवाद है तेरा दी मुझे जो ऐसी माँ
है विनती एक यही तुमसे हर बार बने ये हमारी माँ