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तर्खर / हरिभक्त कटुवाल

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हिजोसम्म जो गुँडमा पुलमात्र थीए
आज बचेराबाट पनि जुरेली भइसकेछन् !
लौ, यी पनि पात रोजिरहेछन् - हाँगा खोजिरहेछन्
गुँड लगाउने तर्खर होला यिनको पनि !!