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साँस का सरगम टूट / अमरेन्द्र

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क्यों लगता है दुख के सारे
दिन वे बीत गए
तुमको पाकर जीवन के सुख
पल में जीत गए।

जीवन का सूनापन है क्या
इसको जान लिया
साथी, तुम मेरी साँसे हो
मैंने मान लिया
अब समझो तुम क्या होगा जो
वापस मीत गए।

आज प्राण के तार-तार सुर
सौ-सौ साध रहे
दोगुण-तिरगुण नहीं ताल के
सारे रंग बहे
आज कहाँ से उमड़ पड़ रहे
इतने सुर, लय, ताल
कल तक तो लगता था जैसे
सब संगीत गए।