भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वंदना / अमन चाँदपुरी

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:34, 10 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमन चाँदपुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(1)
दिव्य भावना से युक्त छंद हो माँ वीणापाणि
मुझपे सदैव आपकी कृपा बनी रहे।।
शब्द, शिल्प, भाव, बिम्ब आदि अति उत्तम हों
नव्य कल्पना से सदा कविता धनी रहे।।
टूटे नहीं लय कभी छूट का न लूँ सहारा
चाहे मुझसे ही खुद अपनी ठनी रहे।।
सत्य लिखूँ हो निडर रचना बने अमर
नित्य प्रति गतिशील मेरी लेखनी रहे।।
--

(2)
अम्ब शब्द सुमनों को चढ़ा चरणों में दिया
दीजिए गुणों को, दोष छार-छार कीजिए।।
काव्य के गगन मध्य चमकूँ मैं सूर्य सम
याचना हो पूर्ण मातु उपकार कीजिए।।
भाव और कला पक्ष 'अमन' हों अति पुष्ट
ऐसे अवगुणों का भी दूर भार कीजिए।।
व्यर्थ न बजाऊँ ढोल, कविता है अनमोल
मेरी लेखनी की ऐसी तीव्र धार कीजिए।।
--

(3)
काव्य की हमारे अम्ब उपमा मिले न कहीं
भाव सिंधु में ज्यों खिले कोटिक कमल हों।।
मोतियों से शब्द चुन-चुन रचूँ कविता माँ
छंद हों प्रवाह युक्त, अर्थ भी सरल हों।।
नव्य कल्पनाएँ पंक्तियों में बसे वीणापाणि
गीत, क्षणिका, कवित्त, दोहा या गजल हों।।
हाथ जोड़ कह रहा पुत्र आपका 'अमन'
मातु हस्त शीष रखो हम भी सफल हों।।