Last modified on 14 जुलाई 2008, at 12:09

मेघकाल में / महेन्द्र भटनागर

बादलों में छिप गये सब दृष्टि-सीमा तक सितारे !


आज उमड़ी हैं घटाएँ,
चल रहीं निर्भय हवाएँ,
दे रहीं जीवन दुआएँ,
उड़ रहे रज-कण गगन में,
घोर गर्जन आज घन में,
दामिनी की चमक क्षण में,
जब प्रकृति का रूप ऐसा हो गए ये दूर-न्यारे !


जब बरसते मेघ काले,
और ओले नाश वाले
भर गये लघु-गहन नाले,
विश्व का अंतर दहलता,
मुक्त होने को मचलता,
शीत में, पर, मौन गलता,
हट गये ये उस जगह से, हो गए बिलकुल किनारे !