चतुर्थ अध्याय / रंजना वर्मा
व्यास जी बोले-
एक दिवस नैमिष निर्जन में। शौनकादि ऋषि बैठे वन में।।
चिंतित जग की दशा निहारें। तभी सूत जी वहाँ पधारे।।
लगे पूछने सब मिल उन से । वांछित फल मिलता किस व्रत से।।
कहा सूत ने नारद ने भी। पूछा कमलापति से यह ही।।
प्रभु ने था जो उन्हें बताया। वही आज है मैं ने गाया।।
एक बार नारद मुनि ज्ञानी । करतल बीन राममय बानी।।
भ्रमण कर रहे लोक लोक में। देखा मानव पड़ा शोक में।।
मृत्यु-लोक में दुख है भारी। कर्म भोग भोगें नर नारी।।
कैसे कष्ट दूर हो इन का। यही एक चिंतन था मन का।।
विष्णु लोक वे पहुँचे जा कर। रूप चतुर्भुज देखा सुंदर।।
शंख चक्र पंकज वनमाला। गदा हाथ उर बाहु विशाला।।
विनय करें नारद मुनि ज्ञानी। मनातीत चित् रूप अमानी।।
निर्गुण गुणी अनादि अनन्ता। गान करें शारद श्रुति सन्ता।।
आदि भूत आरतिहर स्वामी। नमन तुम्हें हे अंतर्यामी।।
बोले श्री हरि जगदाधारा। किस कारण आगमन तुम्हारा।।
शंका इच्छा हो जो मन में। करूँ निवारण उस का क्षण में।।
नारद बोले मृत्यु-लोक में। सारे प्राणी पड़े शोक में।।
नाना योनी नानाकारा। कर्म-भोग भोगे जग सारा।।
भूतल पर हैं नाना रोगा। कैसे शमन कष्ट का होगा।।
लघु उपाय कोई बतलायें। जिस से सभी सुखी हो जायें।।
बोले हरि सुनिये मुनि नारद। परहित तत्पर वाक्य विशारद।।
जो कर के सब सुखी रहेंगे। हम उपाय अब वही कहेंगे।।
स्वर्ग मर्त्य दोनों में दुर्लभ। यह व्रत हो सब भक्तों को लभ।।
सत्यनारायण का यह व्रत है। इस को करने में जो रत है।।
सुख सम्पत्ति सभी सुख पाता। मरने बाद मुक्त हो जाता।।
यह सुन कर नारद जी बोले। कृपासिन्धु अब रहस्य खोलें।।
क्या फल क्या विधान है इसका। कर के भला हुआ है किसका।।
यह सब विधि प्रभु आप बतावें। कब व्रत करें यही समझावें।।
बोले हरि दुख कष्ट मिटेगा। अन धन जग में मान बढ़ेगा।।
सम्पति औ सौभाग्य प्रदाता। यह व्रत जय अरु सन्तति दाता।।
जिस दिन मन में श्रद्धा जागे। उसी दिवस हो प्रभु के आगे।।
सत्य नारायण का आवाहन। बन्धु बांधवों युत हो वन्दन।।
नत मस्तक नैवेद्य चढ़ावे। केला घी अरु दूध मंगावे।।
गेहूँ या चावल पंजीरी। गुड़ या चीनी या हो बूरी।।
भक्ति प्रेम से पूजन कर के। कथा सुने ब्राह्मण को वर के।।
विप्र बन्धु सब भोग लगावे। प्रेम सहित भोजन करवावे।।
दे दक्षिणा प्रेम से उन को। शांति प्राप्त हो जावे मन को।।
खा प्रसाद सब नाचें गायें। तदुपरांत अपने घर जायें।।
इस से इच्छा होगी पूरी। दुख विपत्ति से होगी दूरी।।
नाम मिटा देता जो दुख का। लघु उपाय है यह कलयुग का।।
।। श्री सत्य नारायण व्रत कथा का प्रथम अध्याय समाप्त।।