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अप्रभावित / महेन्द्र भटनागर

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वर्षों

जी लिया जीवन अकेले,
शेष भी
चुपचाप जी लेंगे !

विष-जल पी लिया
दिन.... रात
बेबस,
मृत्यु की उत्सुक प्रतीक्षा में !
भविष्य विनाश वीक्षा में !

विषज हर द्रव्य
हँस कर
शेष जीवन-हेतु
अपने-आप पी लेंगे !

मत करो चिन्ता -
निवासी विष-निलय का मैं,
महा शिवतीर्थ हूँ
अपने समय का मैं !

......-...... (47) आत्म-निरीक्षण

जीवन भर
कुछ भी
अच्छा नहीं किया !
ऐसे तो
जी लेते हैं सब,
कुछ भी लोकोत्तर
जीवन नहीं जिया !
अपने में ही
रहा रमा,
हे सृष्टा !
करना सदय क्षमा !