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कला का पहला क्षण / मनमोहन

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कई बार आप

अपनी कनपटी के दर्द में

अकेले छूट जाते हैं


और कलम के बजाय

तकिए के नीचे या मेज़ की दराज़ में

दर्द की कोई गोली ढूंढ़ते हैं


बेशक जो दर्द सिर्फ़ आपका नहीं है

लेकिन आप उसे गुज़र न जाने दें

यह भी हमेशा मुमकिन नहीं


कई बार एक उत्कट शब्द

जो कविता के लिए नहीं

किसी से कहने के लिए होता है

आपके तालू से चिपका होता है

और कोई उपस्थित नहीं होता आसपास


कई बार शब्द नहीं

कोई चेहरा याद आता है

या दूर की कोई पुरानी शाम

और आप कुछ देर

कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए


भाई, हर बार रूपक ढूंढ़ना या गढ़ना

मुमकिन नहीं होता

कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है

कि दिल ज़हर में डूबा रहे

और आँखें, बस, कड़वी हो जाएँ