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विस्मृति / मनमोहन

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एक दिन उसने पानी को स्पर्श करना चाहा

तब पानी नहीं था
त्वचा व्याकुल थी काँटे की तरह
उगी हुई पुकारती हुई

यही मुमक़िन था
कि वह त्वचा को स्पर्श से हमेशा के लिए
अलग कर दे

तो इस तरह स्पर्श से स्पर्श
यानी जल अलग हुआ
और उसकी जगह
ख़ाली प्यास रह गई

किसी और दिन किसी और समय
मोटे काँच के एक सन्दूक में
बनावटी पानी बरसता है
जिसे वह लालच से देखता है
लगातार

पानी की कोई स्मृति
अब उसके पास नहीं है

शर्मनाक समय

कैसा शर्मनाक समय है
जीवित मित्र मिलता है
तो उससे ज़्यादा उसकी स्मृति
उपस्थित रहती है

और उस स्मृति के प्रति
बची खुची कृतज्ञता

या कभी कोई मिलता है
अपने साथ खु़द से लम्बी
अपनी आगामी छाया लिए