भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेवजह दिल पे कोई /उर्मिलेश
Kavita Kosh से
Dr.sonroopa vishal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 20 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: बेवजह दिल पे कोई बोझ न भारी रखिये ज़िन्दगी जंग है इस जंग को जारी र…)
बेवजह दिल पे कोई बोझ न भारी रखिये ज़िन्दगी जंग है इस जंग को जारी रखिये
अब कलम से न लिखा जाएगा इस दौर का हाल अब तो हाथों में कोई तेज कटारी रखिये
कितने दिन ज़िन्दा रहे इसको न गिनिये साहिब किस तरह ज़िन्दा रहे इसकी शुमारी रखिये
उसकी पूजा कहीं ईश्वर को न कर दे बदनाम अब तो मंदिर में कोई और पुजारी रखिये
आपको आपसे बढ कर जो बताएं हरदम ऐसे लोगों से ज़रा दूर की यारी रखिये
ज़िन्दगी भर के लिए हम न कहेंगे तुमसे आज,बस आज ज़रा बात हमारी रखिये .