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सबसे अच्‍छे खत / कुमार मुकुल

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सबसे अच्‍छे खत वो नहीं होते जिनकी लिखावट सबसे साफ होती है जिनकी भाषा सबसे खफीफ होती है वो सबसे अच्‍छे खत नहीं होते

जिनकी लिखावट चाहे गडड-मडड होती है पर जो पढी साफ-साफ जाती है सबसे अच्‍छे खत वो होते हैं जिनकी भाषा उबड़-खाबड़ होती है पर भागते-भागते भी जिसे हम पढ लेते हैं जिसके हर्फ चाहे धुंधले हों पर जिससे एक चेहरा साफ झलकता है

जो मिल जाते हैं समय से और मिलते ही जिन्‍हे पढ लिया जाता है वो खत सबसे अच्‍छे नहीं होते

सबकी नजर बचा जिन्‍हें छुपा देते हैं हम और भागते फिरते हैं जिसकी खुशी में सारा दिन शाम लैंप की रोशनी में पढते हैं जिन्‍हें वो सबसे अच्‍छे खत होते हैं

जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे डाले जा चुके हैं और जिनका इंतजार होता है हमें और जो खो जाते हैं डाक में जिन्‍हें सपनों में ही पढ पाते हैं हम वे सबसे अच्‍छे खते होते हैं।