भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभै के कल्याण / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:27, 1 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रह्मदेव कुमार |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRac...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साक्षरता अभियान हो, साक्षरता अभियान।
पढ़ाय-लिखाय करतै, सभ्भै के कल्याण।।

जेहूँ नाहीं पढ़लेॅ छै, वहूँ-वहूँ पढ़तै
लिखै लेॅ जें जानै छै, वहूँ-वहूँ लिखतै।
आबेॅ नाहीं रहतै कोय मुरख अज्ञान।।

गीदर-बुतरू पढ़तै, भाय-बहिन पढ़तै
सूअर-मुर्गी चरतै, तैयोॅ वाँहीं पढ़तै।
पढ़ी-लिखी बनतै, आदमी समान।।

जबेॅ जानी जैतै, नशा नाहीं करतै
नाहीं पीतै बीड़ी-चुट्टी, दारु नाहीं पीतै।
साफ-सफाई के राखतै धियान।।

पढ़ी-लिखी सीखतै, नया-नया जानतै
नया-नया खेती करतै, खूबे उपजैतै।
नाची-नाची बजैतै, बाँसुरी के तान।।

तन सुखी होइतै, मन सुखी होइतै
पढ़ी-लिखी सभ्भेॅ जन सुखी होइतै।
जिनगी में ऐतै, हँसी-मुस्कान।।