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अधर- मधु / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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1
शुभ दर्शन
तृप्त हुए नयन
सिंचित मन।
2
जैसे हो तुम
काश ऐसा ही होता
सारा जीवन।
3
नेह की दृष्टि
मुस्कान भरी प्रिये !
मोहक सृष्टि।
4
विधु -सा भाल
नैन मुग्ध विशाल
चन्द्रिका खिली।
5
अधर- मधु
छलका पल-पल
भावविह्वल
6
आशा न छोड़ो
भूलो विगत दुःख
मैं हूँ संग में
7
मधु चुम्बन
देकर खिला दूँगा
बुलालो मुझे।
8
नेह की आँच
पाएँगे तन मन
मुस्काओ तुम
9
स्वप्न में आऊँ
पलभर न जाऊँ
तुम्हें तजके।
10
विरह मिटे
बाँध लेना बाहों में
मन -तन को
11
चाँद उदास
धरती की छाया भी
छीनती खुशी।
12
तुम हो चाँद
में सूरज तुम्हारा
छाया हरूँगा।
13
काली छायाएँ
मिटेंगी किसी दिन
हमने ठाना।
14
मौन टूटा है
सौरभ का झरना
मानों फूटा है।