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किनारे मिले / प्रेमलता त्रिपाठी

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तोड़ कर बंधनों, को किनारे मिले।
इष्ट की साधना, के सहारे मिले।

सूझती थी न कोई डगर अंध की
मन मिले तो वहाँ, चाँद तारे मिले।

प्रीति में पंथ हो वासना का नहीं,
हो सके पुण्य हरि रूप द्वारे मिले।

धो सकें मैल मन जो यही चाहना,
चाह मन में अगर बीच धारे मिले।

ज्योति पावन जगे सत्य से मत डरो,
दीप के ही तले अंधियारे मिले।