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आलिंगन तरसे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

29
मन उन्मन
तरसे आलिंगन
कहाँ खो गए
अब चले भी आओ
परदेसी हो गए !!
30
आकर लौटे,
बन्द द्वार था मिला
भाग्य की बात,
दर्द मिले मुफ़्त में
प्यार माँगे न मिले।
31
टूटते कहाँ
लौहपाश जकड़े
मन व प्राण
मिलता कहाँ मन
जग- निर्जन वन।
32
गुलाबी नभ
करतल किसी का
पढ़ा औचक
नाम था लिखा मेरा
अग-जग उजेरा।