भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आखिर लोग क्या कहेंगे / राजकिशोर सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:40, 7 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकिशोर सिंह |अनुवादक= |संग्रह=श...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर में, ऽाने को दाने नहीं
पिफर भी
अतिथियों के आ जाने पर
कर्ज लेकर
कराना पड़ता है
उन्हें लजीज जलपान
आऽिर क्या कहेंगे
दूर से आये हुए मेहमान
पहनने के लिए घर में
एक भी नहीं है चिथड़ा
पिफर भी
पड़ोसियों से लेकर, देना पड़ता है
उन्हें अंग वस्त्रा का सामान
आऽिर कैसे कहलाऐंगे
बहुत बड़ा ध्नवान
रहने के लिए, न है टूटी मड़ैया
पिफर भी
भाड़े पर इंतजाम करते हैं
उनके लिए मकान आलीशान


आऽिर क्या कहेंगे
नव आगन्तुक मेहमान
जेब में नहीं रहती
एक भी पफूटी कौड़ी
पिफर भी
शहर के लोगों के बीच
चंदा देने में हैं हम बदनाम
आऽिर क्या कहेंगे
आशा लेकर आये हुए इंसान
पीते नहीं बीड़ी, ऽाते नहीं ऽैनी
पिफर भी
दारु पीने के लिए
साथियों को देते रहते पैगाम
आऽिर कैसे मिलेगा
लोगों से सम्मान
मिलती नहीं पफुर्सत
सांस भी लेने की
पिफर भी
आगन्तुकों के आने पर
बातों में हो जाती सुबह से शाम
नहीं तो क्या कहेंगे
गप्प लड़ाते हुए श्री मान
काम की अध्किता में
दिल नहीं करता
औरों का मुँह भी देऽूँ
पिफर भी

लोगों के आ जाने पर
लाते हैं चेहरे पर
व्यापारिक मुस्कान
आऽिर क्या कहेंगे
सामने बैठे इन्सान
मित्रों! दुनिया कुछ कहे
पिफर भी
करो अपने मन मुताबिक काम
नहीं तो
लुट जाओगे, हो जाओगे कंगाल
बिक जाएगा घर, सारा सामान
अंत में क्या कहेंगे
ये सारे इन्सान।